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________________ अावश्यक निवेदन जिन महापुरुषों ने सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र की पूर्णता प्राप्त करके राग-द्वेष तथा मोह आदि आन्तरिक विकारों को पूर्ण रूप से जीत लिया है, उन महात्माओं के प्रवचन ही . संसार का वास्तविक कल्याण करने में समर्थ होते हैं । परन्तु उन गहन प्रवचनों को समझना सर्वसाधारण के लिए सहज नहीं है। प्रवचनों की सुगम व्याच्या करके, उनमें से विशेष उपयोगी और सारभूत तत्त्वों का पृथक्करण करके उन्ह समझाना विशिष्ट विद्वता के साथ कपायों की मंदता की भी अपेक्षा रखता है । जिन महापुरुषों को यह दोनों गुण प्राप्त हैं, वही वास्तव में प्रवचनों के सच्चे व्याख्याकार हो सकते हैं। स्थानकवासी (साधुमार्गी ) जैन समाज के सुप्रसिद्ध प्राचार्य, पूज्यवर्य श्री जवाहरलालजी महाराज ऐसे ही एक सफल ज्याख्याकार थे। पूज्यश्री ने सूत्रकृतांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, उपासकदशांग तथाःउत्तराध्ययन आदि.कई सूत्रों पर विस्तृत व्याख्या की है, जिसमें से कुछेक न्याख्यान ही:पिछले तेरह वर्ष में मण्डल की ओर से लिपिवद्ध हो सके हैं। मण्डल द्वारा लिपिवद्ध कराए हुए व्याख्यानों में से . श्री उपासकदशांग सूत्र की व्याख्या का सम्पादन परिडत
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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