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________________ [३८१] नारफ-वर्णन प्रश्न-शूनाभोग आहार अर्थात् अनजान में, इच्छा न होते हुए भी होने वाला पाहार कैसे संभव है ? . उत्तर-मनुष्य यह नहीं चाहता कि मेरे शरीर पर रज लगे या मेरे भोजन में गंदगी श्रावे; लेकिन जब आँधी चलती है तो शरीर पर रज लग ही जाती है और भोजन में भी आ जाती है । जब कोई बीमारी फैलती है, तब डाफ्टर कहते हैं'खान-पान में सावधान रहो, गंदगी मत होने दो और. दूसरे खराब परमाणुओं को अपने शरीर में प्रवेश मत होने दो। यद्यपि डाक्टर को रोग मिटाना अभीष्ट है लेकिन वह गंदगी से बचने की वात कहता है। इससे यह स्पष्ट है कि शरीर . में गंदगी जाती है। ऐसा न होता तो डाक्टरको मनाई करने की क्या आवश्यकता होती? यद्यपि गंदगी खाने की इच्छा कोई करता नहीं है, तथापि किसी न किसी कारण से गंदगी खाने में आ ही जाती है। इसी प्रकार इच्छा न होने पर भी, शरीर के आसपास घूमने वाले परमाणु आहार में शा जाते हैं। इसी आधार पर अन्यान्य क्रियाओं पर विचार करने । से प्रतीत होगा कि किस प्रकार इच्छा के अभाव में भी अनेक कार्य-होते रहते हैं। गौतम स्वामी का मूल प्रश्न है-श्राहार के समय की मर्यादा का; पर भगवान ने फरमाया-आहार दो प्रकार का होता है। इन दोनों प्रकार के आहारों में से अनाभोग-शाहार तो निरंतर-प्रतिक्षण होता रहता है । एक समय भी ऐसा व्यतीत नहीं होता, जब यह थाहार न होता हो । यह आहार
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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