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________________ श्रीभगवती सूत्र [३८० } द्वार कहते हैं। उन द्वारों में नरक के जीवों के आहार के साथ दूसरे जीवों का आहार भी वसलाया गया है। तथा माहारविपयक और और यात. भी उसमें वतलाई गई हैं। यहां नारकी जीवों के आहार के विषय में ही परणवणा के अनुसार दिग्दर्शन कराया जाता है। • पराणवरसासूत्र में गौतम स्वामी, भगवान महावीर से प्रश्नं करते हैं कि-हे भगवन् ! अगर नारकी जीव आहारार्थी हैं तो कितने समय में उन्हें आहार की इच्छा होती है ? अर्थात् एक बार श्राहार कर लेने के पश्चात् कितने समय बाद उन्हें आहार की अभिलाषा होती है ? .. . इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फरमाते है-हे गौतम! नरक के जीवों का आहार दो प्रकार का है-(१) आयोगनिवर्तित और (२) श्रनाभोगनिर्वर्तित। खाने की बुद्धि से जो आहार किया जाता है वह श्रामोगनिर्वचित आहार कहलाता है और आहार की इच्छा न होने पर भी जो श्राहार होता है वह अनाभोगनिवर्तित आहार कहलाता है। यहां श्राहार का प्रकरण होने से आहार के विषय में ही यह कहा गया है कि इच्छा न होने पर भी आहार होता है। मगर यह कथन अन्य क्रियाओं के संबंध में भी लागू होता है । इच्छा के विना अन्यान्य कार्य भी प्रकृति के नियमा नुसार होते रहते हैं । छमस्थ अवस्था जब तक बनी हुई है, या जब तक यह स्थूल शरीर विद्यमान है, तब तक अनाभोग पूर्वक कार्य होते रहते हैं। इन कार्यों में कुछ अनजान में होते हैं और कुछ जानकारी में होते हैं। हाँ, अपनी इच्छाओं को नियंत्रित करते रहने से और अच्छे कार्यों में निरंतर संलग्न रहने से श्रनाभोग आहार कम अवश्य हो सकता है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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