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________________ [३७६] नारक-वर्णन से ऐसी असा दुर्गन्ध निकलती है, उन्हें भी लोग बड़े चाव से खा जाते हैं । वह वाम मछली जो अतिशय बदबूदार होती है, उसके विषय में लोगों का कहना है कि खाने वाले लोग बाम मछली को ऐसी सची से खाते हैं, जैसे दूसरे लोग मिठाई खाते हैं। इस प्रकार मनुष्य प्राणी भी उस चीज को रूचिपूर्वक पेट में डाल लेते हैं, जिसके पास खड़ा भी नहीं । रहा जाता । गांधीजी ने एक पुस्तक में तो यहां तक लिखा है कि किसी देश के निवासी विष्टा भी खा जाते हैं।। जव मनुष्य अनेक प्रकार के उत्तम एवं स्वादिष्ट भोज्य पदार्थों के रहते भी ऐसी-ऐसी घृणास्पद नीच वस्तुएँ "खा जाते हैं और उसमें सुख का अनुभव करते हैं तो नरक के जीवों का, भूख के असह्य दुःख से व्याकुल हो जाने पर अशुचिमय पदार्थों को खाने में सुख मानना आश्चर्यजनक नहीं कहा जा सकता । लेकिन ज्ञानी जन कहते हैं कि मान लेने से ही सुख नहीं हो जाता । इस प्रकार माना हुआ सुख वस्तुतः दुःख रूप है। जीव सुख की भ्रान्ति से ही 'बाह्य भोजन की इच्छा करता है, लेकिन वास्तविक सुख वह है जिसमें बाह्य भोजन की आकांक्षा ही न हो; यही नहीं वरन् किसी भी पर-पदार्थ के संयोग की इच्छा न रह जाय । तभी सच्चा सुख प्राप्त होता है। , भगवान् ने गौतम स्वामी से कहा कि नरक के जीवों - के आहार के संबंध में पराणवणा सूत्र के २८ पद में जो वर्णन किया है, वही वर्णन यहाँ भी समझ लेना चाहिए । - प्राणवणा सूत्र में नरकं आदि के जीवों का श्राहारवर्णन छोटे-छोटे हिस्सों में किया गया है। उन हिस्सों को
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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