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श्रीभगवती सूत्र
[३८] जीव को भी प्राहार की आवश्यकता पड़ती है। जहां शरीर है वहां आहार भी अनिवार्य है।
नरक दुर्गन्धमय है। वहां रक्त पीव श्रादि घोर अशुचि . पदार्थ भरे हुए हैं। वहां की भूमि इतनी बासजनक है कि उसका स्पर्श करते ही ऐसी वेदना होती है मानों एक साथ हजार विच्छुओं ने काट खाया हो। ऐसी भूमि में रहने वाले नारकी जीव क्या श्राहार करते होंगे ? भगवान् से गौतम स्वामी ने इस अभिप्राय से यह प्रश्न पूछा है कि-नरक में और कोई वस्तु तो है नहीं, फिर क्या जो अशुचिमय वस्तु नरक में है, उसीको नारकी जीव खाने की इच्छा करता है ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् कहते है-हाँ गौतम ! नरक के जीव खाने की इच्छा करते हैं। नारकी उस कनिष्ठ अवस्था - में पड़े हुए हैं, और नरक में रक्त, पीव श्रादि वस्तुएँ ही है, तथापि वे इस आहार के लिए प्रार्थना करते हैं।
सुसंस्कारी पुरूष जिस वस्तु से घृणा करते हैं, उसी को संस्कार विहीन या नीच प्रकृति के लोग बड़े उत्साह से 'खाते-पीते हैं । यह बात प्रत्यक्ष देखी जाती है । जव मनुष्यलोक में ही इतना महान् रूचि वैचित्र्य देखा जाता है, तो नरक का क्या पूछना है ? वहाँ के जीव निकृष्ट वस्तुओं के श्राहार की याचना करें, यह अस्वाभाविक नहीं कहा जा सकता।
मैं एक वार पनवेल गया था। वहाँ जव जंगल जाता तो जिन मच्छियों को मार कर सुखाया गया था, उनकी बड़ी दुर्गन्ध पाती थी । दुर्गन्ध इतनी उग्र थी कि खड़ा रहना कठिन होता था । उन मच्छियों में से-वाम नाम की मच्छी तो और भीअधिक बदबू देती थी। मैंने सोचा-जिन मच्छियों