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________________ [ ३७७ ] नारक- वर्णन प्रश्न - नारकी जीवों के श्राहार के संबंध में पराणवणा सूत्र का जहां उल्लेख किया गया है वहां पद का उल्लेख न करके सीधा श्राहारोद्देशक क्यों कहा गया है ? पहले पद बतलाना उचित था, फिर उसके साथ उद्देशक का कथन करना ठीक रहता । उत्तर -- यहां पद- लोपी समास हुना है । इस समास के कारण 'पद' शब्द का लोप हो गया है, तथापि 'पद' शब्द का अर्थ विद्यमान समझना चाहिए । पणवरण सूत्र में आहार विषयक जो वर्णन आया है, उसका सामान्य दिग्दर्शन शास्त्रकार ने निम्नलिखित गाथा मैं किया है: eve ठिई उस्सासाहारे, किं वाऽऽहारेंति सव्वच वा वि । कतिभागं सव्वाणि व, कीस व भुज्जो परिणमति १ ॥ इस संग्रह - गाथा में उन चालीस द्वारों का संक्षिप्त उल्लेख किया गया है । भगवान् ने गौतम स्वामी से कहा है कि नारकी जीव भी हार के अर्थी हैं। 'यहाँ आहार के अर्थी' पद के दो अर्थशास्त्रकारों ने किये हैं। जिसे आहार की इच्छा हो वह श्रहारार्थी कहलाता है, और आहार ही जिनका प्रयोजन हो - वह भी श्रहारार्थी कहलाते हैं। 'गौतम स्वामी के प्रश्न और भगवान् महावीर के उत्तर से तत्व यह निकला कि निकष्ट से निकृष्ट योनि में पड़े हुए
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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