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नारक-वर्णन जाती है, अतएव संतत पद और कहा है। उदाहरण के लिए-'लोक में मनुष्य कहते हैं कि हम निरंतर भोजन करते हैं।' यहां निरंतर पद का प्रयोग करने पर भी कोई मनुष्य प्रतिक्षण सदा नहीं खाता रहता। बीच में काफी समय रहता ही है । फिर भी रोज-रोज भोजन करने को निरन्तर, भोजन करना कह दिया जाता है। यहां श्वासोच्छ्वास के विषय में ऐसा न समझा जाय, इस अभिप्राय से सतत और संतत-दो निरंतरतावाचक शब्दों का प्रयोग कियागया है। इन दो शब्दों के प्रयोग से यह सूचित हो गया कि वीच में समय खाली नहीं रहतां-नारकी जीवों की श्वासोच्छ्वास-क्रिया सदा-सर्वदा-प्रतिक्षण चालू रहती है।
यांख बन्द करके खोलने में भी असंख्य समय लगते हैं इस समय में भी नरक के जीवों का श्वासोच्छ्वास वरायर जारी रहता है । वह किसी भी समय बंद नहीं होता।
नरक के जीवों के श्वासोच्छ्वास का वर्णन करके यह दिखलाया गया है कि-'हे प्राणी! समझले, पहले ही सावधान हो ले । देख, नरक के जीवों को कितना कष्ट होता है।
नरक के दुःखों का वर्णन देखकर श्रात्मासचेत हो जाय, इसीलिए श्री गौतम स्वामी ने नरक का वर्णन पूछा है और भगवान ने नरक का वर्णन किया है । भगवान् महावीर ने नरक का वर्णन ही नहीं किया है, अपितु नरक को अपना पुराना घर बतलाया है। उन्होंने गौतम से कहा है किगौतम! मैं और तू-दोनों नरक में भी गये है और स्वर्ग में भी गये हैं। संसार की कोई योनि शेप नहीं, जिसमें संसारी जीव अनेक वार न भटक पाया हो। असंख्य काल ऐसी