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श्रीभगवती सूत्र
[३७०] पर ही टिका हुआ है। श्वासोच्छ्वास की क्रिया बंद हो जाने पर शरीर भी नहीं रहता। ___ गौतम स्वामी ने भगवान् से नारकी जीवों के श्वासोच्छवास के संबंध में प्रश्न किया है। प्रश्न के उत्तर में पएणवणा सूत्र का हवाला दे दिया गया है। मगर टीकाकार ने संक्षेप कप से यह बतला दिया है कि परणावणासूत्र में प्रस्तुत विषय में क्या वर्णन किया गया है। उस सूत्र में भगवान् ने कहा है कि नारकी जीव सतत श्वासोच्छ्वास लेते रहते हैं।
जो अधिक दुखी होता है उसे अधिक श्वास प्राता है। श्वास ज्यादा आने लगा कि दुःख की मात्रा बढ़ी। श्वास अधिक पाने पर कैसी घबराहट होती है, यह हम लोग । संसार में देख सकते हैं। श्वास की बीमारी में जिसे श्वास चलता हो उससे पूछो । वह अपने दुःख का वर्णन नहीं कर सकेगा।
निरंतर श्वासोच्छवास क्यों श्राता है ? इसलिए कि जीव अति दुखी है।
प्रश्न हो सकता है कि सतत कहने से ही निरन्तर की प्रतीति हो गई थी, फिर भी 'सतत' पद क्यों कहा है * ? इसका उत्तर यह है कि अकेला सतत कहने से कुछ कमी रह
. * पण्णवणा सूत्र का पाठ इस प्रकार है:
गोयमा ! सययं संतयामेव प्रामभंति वा, पाणमति व', ऊससांत वा, नीससंति वा ।'