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न हो जाया न रहे तो थोड़ा-
सार
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'नारक-वर्णन और वाह्य श्वासोच्छ्वास को अभ्यन्तर कर लेता है अर्थात् श्वासोच्छ्वास पर अधिकार कर लेता है, उसके लिए कोई कार्य कठिन नहीं रह जाता । जो लोग अधिक उम्र तक जीते हैं, वे इसी क्रिया के प्रताप से । खाना-पीना आदि सव श्वास पर ही निर्भर है। अभी श्वास पर थोड़ा-सा काबू है। अगर इतना भी कावू न रहे तो शरीर में मल-मूत्र भी टिकना काठन हो जाय । शरीर में मल मूत्र का न टिकना . ध्वास पर अधिकार न होने का फल है। कई लोगों को दम उठने लगता है, यह भी श्वास पर नियंत्रण न होने के कारण ही। श्राप लोग अपने को सुखी मानते हैं, लेकिन सारे सुख का प्राधार श्वास ही है । जिस समय श्वास पर से अधिकार उठ जाता है, उसी समय सारे सुख हवा में उड़ जाते हैं। श्वास की क्रिया बिगड़ने से आत्मा को कितनी असाता होती है, यह तो भुक्त-भोगी ही नान सकते हैं। वास्तव में साता-असाता श्वास पर ही निर्भर है। योगीजन वाहा श्वासोच्छवास को अभ्यन्तर कर लेते हैं, अतः उन्हें न रोग होता है, न शोक होता है।
एक बार किसी समाचार पत्र में पढ़ा था कि अमेरिका में एक स्त्री अस्ली वर्ष की है, मगर दिखती वह तीस वर्ष की है । उसने श्वासोच्छवास की क्रिया की सुन्दर साधना, की है । लोग बाहरी क्रियाओं की ओर दौड़ते हैं, परन्तु इस विषय में उदासीन रहते हैं । जो पुरूंप अपने वाह्य श्वासो. च्छ्वास को आध्यात्मिक श्वासोच्छ्वास में ले जाता है, उसे अपूर्व शक्ति और अद्भुत सुख की प्राप्ति होती है।
प्राणी किसी भी योनि में क्यों न हो, उसे श्वासोच्छ्वास अवश्य लेना पड़ता है। यह शरीर श्वासोच्छ्वास की क्रिया