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श्रीभगवती सूत्र
[३५] न जानी हुई बात को समझा देने का नाम ही सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त और निश्चय नय की अपेक्षा चल रहे को चला कहना चाहिए।
'व्यवहार नय की अपेक्षा, जो कलकत्ता जा रहा है, उसे 'चलता' माना जाता है, 'गया' नहीं माना जाता। निश्चय नय कहता है कि जो चलने लगा वह चला अर्थात् जिसने गमन क्रिया प्रारंभ करदी चह गया, ऐसा मानना चाहिए।
विशेषावश्यक भाष्य में इस प्रश्न की विस्तार पूर्वक विवेचना की गई है ।वहां जमाली के 'चलमाणे प्रचलिए' इस मत पर विचार कर इसका सहेतुक खंडन किया. गया है और 'चलमाणे चलिए' इस सिद्धान्त की स्थापना की गई है।
जो लोग यह कहते हैं किं मोक्ष की चर्चा ही तत्व है, उन्हें यह भी समझना चाहिए कि क्या शास्त्र में परमाणु की चर्चा, काल की चर्चा, क्षेत्र की चर्चा नहीं की गई है ? अगर की गई है तो किस दृष्टि से ? शास्त्र में अगर पुण्य की बात कही है तो क्या पाप की बात नहीं कही है ? बंध का विवेचन है तो क्या निर्जरा का विवेचन नहीं है ? शास्त्र में सभी विषयों की यथोचित चर्चा है और यह सभी मोक्ष में निमित्त होते हैं।
'चलमाणे चलिए' इस सिद्धान्त को स्वीकार न करने से अनेक दोष आते हैं । भगवती सूत्र में आगे वर्णन आएगा कि गौतम स्वामी ने भगवान से प्रश्न किया-प्रभो! एक मुनि भिक्षा-चर्या के लिए गया। मोहनीय कर्म के उदय से वहाँ .' उसे कोई दोष लग गया।' दोष तो लग गया मगर बाद में
मुनि को पश्चात्ताप हुश्रा । उसने विचार किया कि मैं गुरु