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________________ श्रीभगवती सूत्र [३५४ ] गिर नहीं सकती, इसलिए चलन है। इस प्रकार यह चारों पद एकार्थक ही है। उत्पत्ति-चलन क्रिया इन चारों पदों में विद्यमान है, श्रतएव शास्त्रकार ने इन्हें एकार्थक कहा है और व्यंजनों एवं घोपों की विभिन्नता तो स्पष्ट ही है। . इन प्राचार्य का अभिप्राय यह है कि पूर्वोक्त कर्म संबंधी विशेष पक्ष ग्रहण करने से उसमें इस सामान्य पक्ष का समावेश नहीं हो सकता, क्योंकि वह कर्म तक ही सीमित रहता है, मगर इस सामान्य पक्ष में विशेष पक्ष का अन्तर्भाव हो जाता है। जैसे 'मनुष्य में राजा-रंक सभी का समावेश होता है, मगर 'राजा' कहने में रंक का समावेश नहीं होता। इसी प्रकार हमारी व्याख्या में कर्म का भी समावेश हो जाता है, तथा अन्य पदार्थों का भी समावेश हो जाता हैमगर कर्म रूप विशेष पक्ष में अन्य पदार्थों का समावेश नहीं होता। इसलिए.सामान्य पक्ष प्रहण करके इन पदों की व्याख्या करनी चाहिए। अव प्रश्न यह है कि शेष पाँच पदों की संगति किस प्रकार विठलाई जायगी? इस प्रश्न का समाधान यह है: इन पाँच पदों का कर्म रूप विशेप पक्ष,स्वीकार करके व्याख्यान किया गया है, मगर यह भी वास्तव में सामान्य रूप ही हैं। कर्म को विशेष करने से यह पद विशेष हो गये हैं, लेकिन वास्तव में यह पद सामान्य है। 'छिप्जमाणे आदि. पद सामान्य रूप से क्रिया वाचक हैं। छेदन चाहे कर्म का हो, चाहे किसी अन्य वस्तु का, सभी के लिए समान रूप से वह
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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