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एकार्थ-अनेकार्थ
मात्र पर कैसे घटाया जा सकता है. इस व्याख्या में पहले के चार पद नाना व्यंजन, नाना घोष वाले और एकार्थक का हिसाव कैसे वैठेगा?
. . इस प्रश्न का उत्तर देते हुए वह प्राचार्य कहते हैं कि हमारे अर्थ में नाना-व्यंजन, नाना घोप और एक अर्थ घटाने में कोई बाधा नहीं है। क्योंकि शास्त्र में उत्पत्ति पक्ष और विगत पक्ष को स्पष्ट कर दिया है । नौ पदों को सामान्य रूप कहने का कारण यह है।
. पहला पद है-'चलमाणे चलिए । 'यह चलन अकेले कम में नहीं, वरन् पदार्थ मात्र में पाया जाता है। चलन का अर्थ हैं-अस्थिरता । अस्थिरता रूप पर्याय को मुख्य फरके यहाँ पदार्थ की उत्पत्ति बतलाई गई है।
दूसरा पद है-'उदीरिज्जमाणे उदीरिए । 'जो वस्तु स्थिर है उसे प्रेरणा करके चला देने को 'उदीरण' कहते है। अतएव उदीरणा भी एक प्रकार की चलन-क्रिया ही है।
तीसरा पद है-'वेइज्जमाणे वेइए। 'वि' उपसर्गपूर्वक 'ए' धातु से 'व्येजन' शब्द वना है । व्येजम का अर्थ है-काँपना । काँपना स्वरूप की अपेक्षा उत्पन्न होना ही है। . चौथा पद है पहिज्जमाणे पहाणे।' अर्थात् जो प्रभ्रष्टभ्रष्ट हो रहा है वह भ्रष्ट दुआ। अपने स्थान से पतित होनागिर जाना-भ्रष्ट होना कहलाता है। यह भी एक प्रकार की चलन-क्रिया ही है। विना चले कोई वस्तु अपने स्थान से