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श्रीभगवती सूत्र
[३५२ भना चाहिए । इस तरह 'चतमाणे चलिए' श्रादि पदों से भगवान् ने यह सूचित किया है कि वस्तु तीनों कालों में विद्यमान रहती है।
श्रीसिद्धसेन दिवाकर कहते हैं कि 'चलमाणे' इस कथन से वर्तमान काल और भविष्यकाल बोध होता है: अतएव गौतम स्वामी भगवान से प्रश्न करते हैं कि द्रव्य भूतकाल में भी होगा या नहीं?
श्रारम्भिक क्रिया से लेकर अन्तिम समय की क्रिया तक वर्तमान और भविष्य का बोध होता है और 'उत्पन्त' कहकर भगवान् ने भूतकाल का बोध कराया है। इस प्रकार पूर्वोळ नौ पदों से यह लिद्ध होता है कि द्रव्य भूत, वर्तमान और भविष्य-तीनॉ कालों में विद्यमान रहता है। इस प्रकार इन पदों में कर्म की चर्चा होने पर भी द्रव्य की चर्चा का भी समावेश हो जाता है।
किसी-किली प्राचार्य का अभिप्राय यह है कि इन नौ पर्दो के विषय में शास्त्र में कहीं ऐसा उल्लेख नहीं है कि यह पद कर्म के विषय में ही कहे गये हैं। ऐसी स्थिति में इन्हें कर्म के सन्बन्ध में ही मानने का कोई कारण नहीं है। श्रतएव इन्हें कर्म के विश्य में सीमित न रखकर वस्तु-मात्र के विषय में लागू करना चाहिए ।
पहले के चार पद उत्पत्ति के सूचक हैं और अन्त के पाँच पद विनाश के सूचक हैं। इन्हें प्रत्येक वस्तु पर घटाया जा सकता है, क्योंकि प्रत्येक वस्तु उत्पाद और विनाश से यूक्त है । मगर प्रश्न यह है कि इन्हें सामान्य रूप से पदार्थ