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एकार्थ- श्रनेकार्थ
लागू हो सकते हैं । इसी प्रकार भेदन कर्म का भी होता है और अन्य वस्तुओं का भी । जलना, भरना, जर्जरित होना, श्रादि क्रियाएँ भी अकेले कर्म से ही संबंध नहीं रखती, श्रपितु सभी से उनका संबंध है । इससे यह स्पष्ट है कि यह पद भी सामान्य रूप ही है, विशेष रूप नहीं 1.
. इन पदों को भिन्न अर्थ वाला क्यों कहा है ? इस प्रश्न का उत्तर यह है कि छेदन-भेदन आदि भिन्न-भिन्न क्रियाएँ हैं । जैसे कुल्हाड़ी से वृक्ष की शाखा को छेद डालना पृथक् है और तीर से शरीर को भेद डालना पृथक् है । छेदन तो अलगअलग कर देता है और भेदन भीतर घुसने को कहते हैं । इस प्रकार छेदन और भेदन में अन्तर है । इसी प्रकार अग्नि से घास-फूस को जलाना छेदन-भेदन से पृथक् है । मरण, प्राण त्याग करने को अथवा वस्तु के यदल जाने को कहते हैं । श्रतएव यह भी छेदन-भेदन और ज्वलन से भिन्न ही हुआ, क्योंकि जीव बिना छेदन, भेदन किये और विना 'जलाये भी मर जाता है । अगर भरण इन क्रियाओं से भिन्न न होता तो ऐसा क्यों होता। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि मरने की क्रिया पूर्वोक्त क्रियार्थो से न्यारी है ।
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बहुत पुराने को जीर्ण कहते हैं । निर्जरना का अर्थ हैजर्जरित होना | पदार्थ विना छेदे भेदे, जलाये भी ऐसा जर्ज: रित हो जाता है कि दीखता तो है मगर हाथ लगाते ही विखरने लगता है । अतएव निर्जीर्ण होना भी छेदन - भेदनं श्रादि से भिन्न समझना चाहिए । इस तरह उक्त पाँचों पद
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भिन्नार्थक हैं, यह बात स्पष्ट हो जाती है ।