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________________ [३४१] एकार्थ-अनेकार्थ ___ कई एकपद समान अर्थ वाले और भिन्न व्यंजन वाले होते हैं । जैसे क्षीर, पय । यहां इन दोनों पदों का अर्थतो समान हैदूध, लेकिन इनके व्यंजन अलग-अलग हैं, और घोष भी अलग हैं। कई पद ऐसे होते हैं कि उनका अर्थ तो भिन्न-भिन्न होता है, मगर व्यंजन समान होते हैं । जैसे-अर्कक्षीर (श्राक का दूध ), गो क्षीर (गाय का दूध), महिषीक्षीर (भैंस का दूध) प्रादि । इन पदों में क्षीर शब्द समान व्यंजन वाला है, लेकिन उसका अर्थ भिन्न-भिन्न है । अर्थात् अक्षरों की समानता होने पर भी अर्थ में विलक्षणता है। ___ अनेक पद ऐसे होते हैं जिनके व्यंजन भी भिन्न-भिन्न होते हैं। और अर्थ भी भिन्न-भिन्न होता है। जैसे-घट, पट, लकुट, आदि ! यहाँ न व्यंजनों की समानता है, न अर्थ की समानता है । यह पद चौथे भंग के अन्तर्गत हैं। ___ गौतम स्वामी ने प्रश्न करते हुए यहाँ चौभंगी के दूसरे और चौथे भंग को ग्रहण किया है। अर्थात् उन्होंने, इन दो भंगों को लेकर ही प्रश्न किया है। प्रश्न किया जा सकता है कि गौतम स्वामी ने उक चौभंगी के प्रथम और तृतीय भंग को क्यों छोड़ दिया ? उनके विषय में प्रश्न क्यों नहीं किया? इसका उत्तर यह है कि पहले और तीसरे भंग का इन नौ पदों में समावेश नहीं होता, क्योंकि नव पदों के व्यंजन भिन्न-भिन्न हैं, यह स्पष्ट रूप से प्रकट है। इसमें प्रश्न को अय. काश ही नहीं है । इसी कारण गौतम स्वामी ने प्रथम और . तृतीयं भंग को छोड़ कर दूसरे और चौथे भंग को ग्रहण करके ही प्रश्न किया है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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