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श्रीभगवती सूत्र
[३४२] इस प्रश्न का उत्तर देते हुए भगवान ने फरमाया है कि-चलमाणे चलिए, उदीरिजमाणे उदीरिए, वेइजमाणे वेइए और पहिज्जमाणे पहाणे, इन चार पदों के व्यंजन और घोष निराले निराले हैं, लेकिन अर्थ एक ही है । और आगे के पाँच पद भिन्न घोषों वाले, भिन्न व्यंनों वाले और भिन्न अर्थ वाले हैं।
____ यहां यह आशंका होती है कि चलमाणे चलिए इत्यादि जिन चार पदों को एक अर्थ वाला बतलायागया है,उनका अर्थ भिन्न-भिन्न प्रतीत होता है और पहले भिन्न-भिन्न अर्थ ही किया भी गया है। ऐसी स्थिति में भगवान् ने किस अपेक्षा में चारों पदों का अर्थ एक फरमाया है ?
इस संबंध में शास्त्रकार का कथन है कि जो भी वात कही जाती है, वह किसी न किसी अपेक्षा से ही कही जाती . है। यहां चारों पदों को उत्पन्न पक्ष की अपेक्षा से एकार्थक वतलाया गया है। . .
' वादी और प्रतिवादी के द्वारा बोला जाने वाला प्रादि वचन पक्ष कहलाता है । यहां इन चारों पदों को उत्पाद नामक पक्ष-पर्याय को ग्रहण करके एक अर्थ वाला कहा है। तात्पर्य यह है कि प्राथमिक चार पदों का अर्थ उत्पाद पर्याय की अपेक्षा एक ही अर्थ है और यह चारों एक ही काल में होने वाले हैं। एक ही अन्तर्मुहूर्त में चलन क्रिया, उदीरणा क्रिया, वेदना क्रिया, और,प्रहीणं क्रिया भी होजाती है। इन चारों की स्थिति एकही अन्तर्मुहूर्त है । इस प्रकार तुल्य काल की अपेक्षा से भी यह चार पद एक अर्थ वाले कहलाते हैं। .