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________________ श्रीभगवती सूत्र [३४०] . व्याख्यान-गौतम स्वामी का प्रश्न यह है की इन नौ पदों के घोष और व्यंजन तो निराले निराले हैं ही, परन्तु अर्थ भी इनका निराला-निराला है या एक ही ? अर्थात् यह पद एकार्थक हैं या नानार्थक हैं ? एकार्थक पद दो प्रकार के होते हैं-प्रथम तो एक ही विषय की वात को एकार्थक कहते हैं, दूसरे जिन पदों का मतलव एक हो उन्हें भी एकार्थक कहते हैं। . घोप तीन प्रकार के होते हैं-(१) उदात्त-जो उच्च स्वर से बोला जाय (२) अनुदात्त-जो नांचे स्वर से बोला जाय और (३) स्वरित्त--जो न विशेष उच्च स्वर से, न विशेष नीचे स्वर से वलिक मध्यम स्वर से बोला जाय । इस विषय का विशेष ज्ञान स्वर--विज्ञान को समझने से हो सकता है। . - - .... शास्त्रकार ने एकार्थक और नानार्थक की एक चौभगी बनाई है (१) समानार्थक समान व्यंजन (२) समानार्थक विविध व्यंजन ____-(३) भिन्नार्थक समान व्यंजन । (४) भिन्नार्थक भिन्न व्यंजन कई पद समान अर्थ वाले और समान व्यंजन एवं समान घोष वाले होते हैं । जैसे-क्षीर--तोर । इन दोनों पदों .. का अर्थ एक है, घोष भी. एक है और व्यंजन भी एक ही हैं। अतएव यह पद समानार्थकं समान व्यंजन वाले पहले भंग के अन्तर्गत हैं।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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