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श्रीभगवती सूत्र
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. व्याख्यान-गौतम स्वामी का प्रश्न यह है की इन नौ पदों के घोष और व्यंजन तो निराले निराले हैं ही, परन्तु अर्थ भी इनका निराला-निराला है या एक ही ? अर्थात् यह पद एकार्थक हैं या नानार्थक हैं ?
एकार्थक पद दो प्रकार के होते हैं-प्रथम तो एक ही विषय की वात को एकार्थक कहते हैं, दूसरे जिन पदों का मतलव एक हो उन्हें भी एकार्थक कहते हैं। . घोप तीन प्रकार के होते हैं-(१) उदात्त-जो उच्च स्वर से बोला जाय (२) अनुदात्त-जो नांचे स्वर से बोला जाय और (३) स्वरित्त--जो न विशेष उच्च स्वर से, न विशेष नीचे स्वर से वलिक मध्यम स्वर से बोला जाय । इस विषय का विशेष ज्ञान स्वर--विज्ञान को समझने से हो सकता है। .
- - .... शास्त्रकार ने एकार्थक और नानार्थक की एक चौभगी बनाई है
(१) समानार्थक समान व्यंजन
(२) समानार्थक विविध व्यंजन ____-(३) भिन्नार्थक समान व्यंजन ।
(४) भिन्नार्थक भिन्न व्यंजन कई पद समान अर्थ वाले और समान व्यंजन एवं समान घोष वाले होते हैं । जैसे-क्षीर--तोर । इन दोनों पदों .. का अर्थ एक है, घोष भी. एक है और व्यंजन भी एक ही हैं। अतएव यह पद समानार्थकं समान व्यंजन वाले पहले भंग के अन्तर्गत हैं।