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________________ श्रीभगवती सूत्र [३३६] दिया-'जिस भूमि पर तृदो पैर रखकर खड़ा है, उसे स्वर्ग की भूमि से भी अच्छी न माने तो तुझे उस पर पैर रखने का श्या अधिकार है ? शिष्य ने कहा-'क्या यह भूमि स्वर्ग की भूमि से भी अधिक महिमा वाली है ?' सुनते हैं, स्वर्ग की भूमि रत्नमयी है, फिर इस भूमि को स्वर्ग-भूमि से बड़ी क्यों मानना चाहिए ? डाक्टर ने उत्तर दिया-स्वर्ग की भूमि चाहे जैसी हो, तेरे किस काम की ? वहाँ के कल्पवृक्ष तेर किस काम के? स्वर्ग की भूमि को बड़ा मानना, तेरा जिस भूमि ने भार वहन किया और कर रही है, उसका अपमान करना है। इस भूमि का अपमान करना घोर कृतनता है। अपनी मातृभूमि का अपमान करने वाले के समान कोई नीच नहीं है। सच्चे हृदय से सेवा करने वाली घर की स्त्री का अनादर करके वेश्या की प्रशंसा करने वाला जैसे नीच गिना जाता है, वैसे ही वह व्यक्ति भी नीच है जो भारत में रहकर अमेरिका, फ्रांस आदि की प्रशंसा करता है और भारतवर्ष की निन्दा करता है। अमेरिका और फ्रांस की प्रशंसां के गीत गाने वाले विना पास-पोर्ट लिए वहाँ जाकर देखें और वहाँ की नागरिकता के अधिकार प्राप्त करें तो सही ! जिस देश में पैदा हुए हैं, उसकी निन्दा करके, दूसरे देश की प्रशंसा करने वाले गिरे हुए है, भोग के कीड़ा है, उनसे किसी प्रकार का उद्देश्य सिद्ध नहीं हो सकता। तात्पर्य यह है कि भोगों की लालसा से प्रेरित होकर धात्मिक कार्यों को छोड़ देना, यही गुलामी है, यही बंधन है और इसी से विविध प्रकार के दुःखों का उद्गम होता है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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