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भगवान् का उत्तर
भोगमय कपड़े छोड़कर त्याग को अपनाने वाले के लिए मुक्ति भी समीप हैं । भोगमय वस्त्रों का त्याग आनन्द श्रावक ने भी तो किया था। उसने कपास के वने एक युगलपट (क्षौम वस्त्र) का आगार रखकर शेष संमस्त वस्त्रों का त्याग कर दिया था। क्या इस त्याग को मोक्ष का मार्ग न मानोगे? इस प्रकार पापमय वस्त्रों का त्याग कर हम अपने प्रात्मा का भी कल्याण क्यों न करे? इंनपापमय-भोगीकपड़ों का त्याग करना सामायिक का अंगक्यों न कहा जाय ? बारहों व्रत सामायिक के अंग है, अतएव इन वस्त्रों कात्याग भी सामायिक है । त्याग द्वारा अपने भाइयों पर अनुकम्पा करना धर्म है । त्याग को जीवन में जितना स्थान मिलेगा, जविन उतना ही कल्याणमय बनेगा।
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