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श्रीभगवती सूत्र
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इस प्रकार की निराशा बबुत-से लोगों में व्यापी हुई है। तव शास्त्र कहते हैं-'चलमाणे चलिए ।' शास्त्र का यह विधान मनुष्य के हृदय को आश्वासन देता है और बतलाता है कि एक समय मात्र की क्रिया भी व्यर्थ नहीं जाती।जब असंख्य समयों में होने वाला कार्य एक समय में भी 'हुआ' माना जाता है तो कोई कारण नहीं है कि असंख्य मनुष्यों से होने वाला कार्य एक मनुष्य से 'हुश्रा' न माना जाय । शास्त्र कहता है-तू अपनी तरफ से जो करता है, वह किये जा। दूसरों का विचार मत कर । अगर तुझे इतना भी विश्वास न होगा तो आगे सामायिक से मोक्ष पर विश्वास कैसे होगा? कदाचित् यह कहा जाय कि सामायिक और मोक्ष में कार्य कारण संबंध है, तो क्या खादी और स्वराज्य में कोई संबंधनहीं है। मनचाहा खाना-पीना स्वतन्त्रता नहीं है। स्वतन्त्रता कुछ और ही चीज़ है। ।
एक तो आपके घर में, घर की खादी है, जिसे आपकी माता ने कात-बुनकर तैयार की है । एक दूसरावादमी आपसे कहता है-अगर मेरे द्वार पर श्राकर, हाथ जोड़ कर माँगो तोमैं तुम्हें कीमती जरी का जामा दूंगा। इस प्रकार एक ओर माँ खादी देता है और दूसरी ओर दूसरा श्रादमीगुलाम बना कर ज़री का वस्त्र देता है। इन दोनों मेंसे स्वतंत्रता किसमें है ?
'खादी में।'
यद्यपि यह यात समझना कठिन नहीं है, फिर भी इस ओर ध्यान नहीं दिया जाता। लोग समझते हैं कि गुलाम चाहे हो, मगर ज़री का जामा पहनने से लोगों में आदर होगा और अच्छा लगेगा । खादी मोटी है, इसलिए बुरी है। इस प्रकार की मिथ्या धारणाएँ लोगों को अपना शिकार बनाए हुए हैं।