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________________ [३३३] भगवान् का उत्तर नहीं हो सकते । जिस टुकड़े के फिर टुकड़े नहीं हो सकते वह अंतिम टुकड़ा परमाणु कहलाता है। इसी प्रकार काल के जिस अंश के विभाग नहीं हो सकते, वह अंतिम विभाग 'समय' कहलाता है। - प्रश्न हो सकता है कि स्वल्प धर्म होने पर ही कल्याण समझ लेने से 'वस हो गया' इस तरह की निराशा क्यों नहीं उत्पन्न होगी? इसका उत्तर यह है कि जो व्यक्ति स्वल्प धर्म का भी महान् फल देखता है वह आगे के धर्म को कैसे भूलेगा? कलकत्ता की ओर एक डग भरने वाले के संबंध में भी कहा जाता है कि 'वह कलकत्ता गया। मगर ऐसा कहने से वह जाने वाला अगर कलकत्ता जाने से रूक जाय तो मूर्ख गिना जायगा । जब कलकत्ता की ओर एक पैर भरने से ही 'कलकत्ता गया' कहते हैं तो अधिक पैर भरने से क्या वह कलकत्तासे दूर होगा? थोड़ा-सा उद्योग सफल होता देखकर हिम्मत नहीं हारनी चाहिए । सोचना चाहिए कि यह थोड़ी-सी क्रिया भी निप्फल नहीं है तो अधिक क्रिया निष्फल कैसे हो सकती है ? तव श्रारंभ किये हुए कार्य को आगे बढ़ाने से क्यों रोका जाय ? चाहे धर्म हो या राजनीति, सर्वत्र यह बात लागू होती है । ऐसा विचार करने वाला कभी • निराश नहीं होगा, बल्कि उसमें नई स्फूर्ति और नया उत्साह उत्पन्न होगा और वह आगे बढ़ता हुआ अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त करेगा। कई लोग कहते हैं-'खादी पहनने से स्वराज्य नहीं मिलेगा, किन्तु तलवार से मिलेगा। कुछ का कहना है-एक श्रादमी के विलायती वस्त्र और शराव छोड़ देने से क्या कल्याण होगा?
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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