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श्रीभगक्ती सूत्र
[३३०] का उत्तर दिया। लेकिन उस जिज्ञासु को यह संदेह उत्पन्न हुआ कि इस विषय में भगवान् न मालूम क्या कहते ? उसने जाकर भगवान् से वही प्रश्न पूछा । भगवान् ने वही उत्तर दिया । श्रोता को उन महात्मा के वचनों पर प्रतीति हुई । इस प्रकार अपने वचनों की, दूसरों को प्रतीति कराने के लिए भी स्वयं प्रश्न किया जा सकता है। .. - इसके सिवाय सूत्र-रचना का क्रमगुरू-शिष्य के संवाद में होता है। अगर शिष्य नहीं होता तो गुरू स्वयं शिष्य बनता है इस तरह सुधर्मा स्वामी इस प्रणाली के अनुसारभी गौतम ' स्वामी और भगवान महावीर से प्रश्नोत्तर करा सकते हैं। यद्यपि निश्चित रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि गौतम स्वामी ने उक्त कारणों में से किस कारण से प्रेरित होकर प्रश्न किये थे, तथापि यह निश्चित है इन प्रश्नों के संबंध में उक्त तर्क को स्थान नहीं है। तर्क निर्मूल है।
भगवान् ने उत्तर में जो 'हन्ता' शब्द कहा है, उसका अर्थ आमंत्रण या संवोधन करना है और 'हां' भी है।
प्रश्न-हंता गोयमा! इतनाकहने से हीगौतम स्वामी के प्रश्नों का उत्तर हो जाता है। फिर भगवान ने 'चलमाणे चलिए, जाव निजरिज्जमाणे णिज्जिरणे' इतने शब्द क्यों कह हैं ? : . उत्तर-यद्यपि 'हंता गोयमा अर्थात् हाँ गौतम ऐसा ही है, इतना कहने से काम चल जाता तथापि अपनी प्राज्ञा दोहराने के लिए भगवान् ने ऐसा फरमाया है। प्रश्न के शब्दों को दोहरा देने से वक्तव्य स्पष्ट हो जाता है । शिष्यों के अनु.ग्रह के लिए इतनी स्पष्टता आवश्यक है।