________________
(३२६
भंगवान् का उत्तर यह दावा है।' गौतम स्वामी संसार के अज्ञ जीवों के वकील बने हैं। वे हम लोगों की ओर से भगवान के समक्ष वकालत करते हैं। हम लोगों पर गौतम स्वामी का कैसा महान् उपकार है ! अगर उन्होंने यह वकालत न की होती तो आज हम लोगों को इन बातों का ज्ञान किस प्रकार होता ? श्राज गुणग्राहक कम होने से चाहे इन वचनों का उतना महत्व न समझा जाय, लेकिन सच्चा तत्त्व-जिज्ञासु इन वचनों को अमृत समझता है और इनका पान करके अपने को कृतार्थ समझता है । एक जगह किसी कवि ने कहा है- .
तेन यहां नागर बड़े, जिन्हें चाह तव आव । · , फूल्यो अनफूल्यो रह्यो, गवई गाँव- गुलाब ॥..
आज श्रेणिक, कामदेव और आनन्द जैसे जिज्ञासु श्रोता नहीं रहे, इसी कारण इन वचनों का सम्मान कम है। यह लोग साधु तो क्या, श्रावक से भी इन वचनों को सुनकर
आनन्द की हिलोरों में उतराने लगते थे। यह लोग गुलाव के पानी की चाह करने वाले नागरिकों के समान थे। जो गँवार हैं उन्हें गुलाब की कद्र का क्या पता? वे उसे कटीला वृक्ष समझकर काट फेकेंगे।
., तात्पर्य यह है कि गौतम स्वामी जानते हुए भी अनजानों की वकालत करने के लिए, अपने ज्ञान में विशदता लाने के लिए, शिष्यों को ज्ञान देने के लिए और अपने वचन में प्रतीति उत्पन्न करने के लिए यह सव प्रश्न कर सकते हैं।
अपने वचन में प्रतीति उत्पन्न करने का अर्थ यह है कि, मान लीजिए किसी महात्मा ने किसी जिज्ञासु को किसी प्रश्न