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________________ श्रीभगवती सूत्र [३८] सकता है । कदाचित् गौतम स्वामी इन प्रश्नों का उत्तर जानते भी हो, तब भी प्रश्न करना संभव है। आप पूछ सकते हैं कि जानी हुई बात पूछने की क्या आवश्यकता है ? इसका उत्तर होगा-उस बात पर अधिक प्रकाश डलवाने के लिए-अपना बोध बढ़ाने के लिए अथवा जिन लोगों को प्रश्न पूछते नहीं पाता, या जिन्हें इस विषय में विपरीत धारणा हो रही है, उनके लाभ के लिए, उन्हें बोध कराने के लिए. गौतम स्वामी ने यह प्रश्न पूछे हैं। भले ही गौतम स्वामी उन्हें स्वयं समझाने में समर्थ होंगे, तथापि भगवान् के मुखारविन्द से निकलने वाला. प्रत्येक शब्द विशेष प्रभावशाली और प्रामाणिक होता है, इस विचार से उन्होंने भगवान के द्वारा ही इन प्रश्नों का उत्तर प्रकट करवाया है। केशी स्वामी को स्वयं कोई संदेह नहीं था, लेकिन शिप्यों का सन्देह हरण करने के लिए गौतम स्वामी से उन्होंने प्रश्न किये थे । उन प्रश्नों का रूप भी ऐसा है, मानो उन्हें स्वयं ही संदेह हो और स्वयं ही प्रश्न करते हों। साहु गोयम पन्ना ते, छिन्नो मे संसओ इमो ॥ अन्नोवि संसो, मझ, तं मे कहसु गोयमा ॥ श्री उ० सूत्र २३ अ० अर्थात्- हे गौतम ! आपने मेरा यह संशय तो दूर कर दिया, लेकिन एक और संशय कहता हूँ। न्यायालय में, न्यायाधीश के समक्ष वकील यह नहीं कहता कि ''उसका यह दावा है ', मगर वह कहता है-'मेरा
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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