SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 42
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [३२५] चलमाणे चलिए निजरिज्जमाणे निज्जिरणे ? . अर्थात्-जो निर्जरता है वह निर्जीर्ण हुआ, ऐसामाना जाय? साधारण तया फल देने के पश्चात् कर्मों का आत्मा से अलग होना निर्जरा है किन्तु यहाँ निर्जरा का अर्थ मोक्ष-प्राप्ति रूप है। कर्म, फिर कभी कर्म रूप से उत्पन्न न हो, उसे निर्जरमान कहते हैं.। मोक्ष प्राप्त करने वाले जो महापुरुष कर्म की निर्जरा करते हैं, उनके निर्जीर्ण कर्म, फिर कभी कर्म कंप से उन्हें उत्पन्न नहीं होते। उन्हें फिर कभी कर्मों को भोगना नहीं पड़ता। इस प्रकार कर्मों का श्रात्यन्तिक क्षीण होना यहाँ निर्जरा कही गयी है। . निर्जरा भी अंसंख्यात. समयों में होती है । मगर जव कर्म निर्जीर्ण होने लगा, तभी-पहले समय में ही निर्जीर्ण हुआ, ऐसा कहना चाहिए। यहाँ पर भी पहले के समान ही शंका की जा सकती है, और उसका उत्तर भी पहले के हीसमान दिया जा सकता है। पहले वस्त्र का दृशान्त देकर यह स्पष्ट कर दिया गया है कि असंख्यात समय में होने वाली क्रिया को प्रथम समय में. भी 'हुई' ऐसा कहा जा सकता है ।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy