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________________ श्रीभगवती सूत्र [३२० उपकरण, उपायं या सांधन को करण कहते हैं। अनुयोगद्वार सूत्र में करण के दो भेद बतलाए गये हैं। पहला भेद है उपकर्म अर्थात् वस्तु को ज्यादा बना लेना। दूसराभेद वस्तु विनाश है यानी वहुत दिन टिकने वाली चीज़ को बिगाड़ देना या कम कर देना । तात्पर्य यह है कि जिस करण के द्वारा बहुत दिन टिकने वाली वस्तु विगाड़ दी जाती है-कम कर दी जाती है, वह वस्तुविनाशकरण है और जिसके द्वारा वस्तु ज्यादा बनाई जाती है वह उपकर्म-करण कहलाता है। . ____ करण के प्रकारान्तर से दो भेद हैं-(१) उद्वर्त्तनाकरण और (२) अपवर्त्तनाकरण । इनमें से अपवर्तनाकरण के द्वारा कर्म की स्थिति कम की जाती है। इस करण द्वारा स्थिति का कम हो जाना ही कर्म का छेदन करना कहलाता है। अपवर्त्तना करण द्वारा होने वाली कर्म-छेदन की इस क्रिया में भी असंख्यात समय लगते हैं, मगर जो छीज रहे हैं उन्हें 'छीजे' कहना चाहिए । अर्थात् छिद्यमान को छिन्न कहना चाहिए। गौतम स्वामी का छठा प्रश्न है: भिज्जमाणे भिरणे ? अर्थात-जो भेदा जा रहा है वह भेदा गया, ऐसा कहना चाहिए?
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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