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________________ श्रीभगवती सूत्र [730 ] बतलाई है वह भी गुगलिया मनुय की अपेक्षा से ही समझना चाहिए। - अंसंज्ञी मनुष्य अगर देवा उपार्जन करता है तो जघन्य दस हजार वर्ष और उत्कृष्ट पल्यापम के असंख्यात भाग की आयु प्राप्त करता है। तात्पर्य यह है कि देव और नरक गति का अंघन्य आयुष्य दस हजार वर्ष का और उत्कृष्ट पल्यापम के अंसं. ख्यात भाग का उपार्जन करता है। इसी प्रकार मनुष्य और तिर्यंच का जघन्य अन्तर्मुर्त और उत्कृष्ट पल्यापन के प्रम ख्यातवें भाग का आयुष्य पाता है। ... गौतम स्वामी फिर पूछते हैं-भगवन् ! इन चारों मायुष्यों में से कौन किससे कम और कौन फिससे ज्यादा है ? भगवान् उत्तर देते हैं-गौतम ! असंज्ञी देव-श्रायुप्य सबसे कम है, असंशो- मनुष्यायुप्य उससे असंख्यातगुणा ज्यादा है। असंज्ञी, देवगति में जाता तो है, लेकिन उसका शुभ आयुष्य अधिक उपार्जन करना कठिन है। इसजिर वह दब का आयुष्य वहुत कम बाँधता है और मनुष्य का ओयुप्य उसकी अपक्षा अंसंख्यातगुणा अधिक बाँधता है। तियव का श्रादुष्य, "मनुष्य-श्रायुष्य की अपेक्षा भी असंख्यातगुणा वाँधता है। और नारकायु, तिथंचायु की अपेक्षा असंख्यात गुणा चौधता है।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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