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श्रीभगवती सूत्र
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आभास नित्य मिलता है। लेकिन वहिर्द्रष्टि पुरुष उस ओर लक्ष्य नहीं देते । उदाहरण के लिए भोजन को ही लीजिए । श्राप भोजन करते हैं, मगर आपको यह पता नहीं है कि यह भोजन कब किस रूप में पलटता है, उसका श्रापके मन पर और तने पर क्या प्रभाव पड़ता है ! लेकिन अभ्यास से पता लगना बहुत कठिन नहीं है । जैसे- जब आपकी आँखों में गर्मी भन्ना रही है, तब आपको कोई तेज़ मसालेदार तेल की चीज़ खिलाना चाहे तो क्या आप खाएँगे १
"नहीं !"
क्योंकि आपको मालूम है कि इस भोजन का परिणाम हानिकारक होगा यद्यपि यह बात प्रत्यक्ष नहीं दीखती । इसी प्रकार आप जो-जो कार्य करते हैं, उनके विषय में शास्त्र से यह पता लग ही जाता है कि इनका फल अमुक-अमुक होगा । इस बात को पूर्ण रूप से प्रत्यक्ष जानने के लिए सर्वज्ञता की 'श्रावश्यकता है। असंही जीव नरक की आयु भी बाँधते हैं और स्वर्ग की आयु भी बाँधते हैं । कहाँ नरक की भीषण यातनाएँ और कहाँ स्वर्ग का अनुपम सांसारिक सुख ! लेकिन अपने ज्ञान में भगवान् ने जैसा देखा है, जगत् के कल्याण के लिए कह दिया है ।
गौतम स्वामी, भगवान् से पूछते हैं-प्रभो ! श्रसंज्ञी जीव मनोहीन हैं, इसलिए सभी असशी क्या नरक की समान आयु का वध करते हैं ? भगवान् ने उत्तर दिया नहीं गौतम, यह बात नहीं है । कोई जीव जघन्य दश हजार वर्ष की आयु बाँधते हैं और कोई उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातवें - साग की आयु चाँधते हैं ।