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असंज्ञी का आयुष्य' वना का निराकरण करने के लिए यह प्रश्न किया हे कि असंही का श्रायुष्य क्या असंज्ञी द्वारा ही उपार्जन किया जाता है ?
गौतम स्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने फर्मायाहाँ गौतम, असंही द्वारा उपार्जन किया हुआ आयुन्य है।
आत्मा जंब प्रकृष्ट अज्ञान की स्थिति में आता है, तव अपने आपको ही भूल जाता है। उसे यह पता नहीं रहता कि मैं क्या करता हूँ। तथापि भगवान् अपने निर्मल ज्ञान में सब कुछ देखते हैं। शरावी को भान नहीं होता कि वह क्या कर रहा है, क्या बोल रहा है, किधर जा रहा है, पूछने पर भी वह ठीक-ठीक उत्तर' नहीं दे सकता, लेकिन समझदार
मी शराबी की सव चपाए देखता है। इसी प्रकार मनोलब्धि विकसित न होने से असंही जीव को मालूम नहीं होता कि वह क्या अच्छा-बुरा कर रहा है। मगर उसके आन्तरिक अंध्यवसाय को हस्तामलकवत् जानने वाले ज्ञानी कह देते हैं कि वह असंही जीव नरक की श्रायु उपार्जन करके नरक में, या स्वर्ग में, इतने समय के लिए जाता है।
' . आप अपनी वाह्य चेप्टाएँ जानते हैं, मगर समस्त आन्तरिक प्रवृत्तियों को; जो प्रतिक्षण हो रही है, जान लो तो सर्वज्ञ होते देर न लगे। किन्तु सर्वज्ञ की स्थिति प्राप्त करने के लिए पहले सर्वज्ञ के वचनों पर विश्वास-सुदृढ़ श्रद्धा करने की आवश्यकता है। ऐसा करने से एक वह दिन अवश्य आएगा जब परमात्मा में और तुममें कुछ भी अन्तर नं रहेगा।
अन्तरात्मा में क्या होता है, इस बात का किंचित्