________________
श्रीभगवती सूत्र
[७०० ] अन्तक्रिया पद में विस्तार पूर्वक वर्णन है, वह यहाँ समझ लेना चाहिए। प्रज्ञापनासूत्र में किया हुश्रा वर्णन संक्षेप में इस प्रकार है:
प्रश्न-भगवन् ! जीव अन्तक्रिया करता है? . ... . उत्तर- गौतम ! कोई जीव करता है, कोई जीव नहीं करता।
प्रश-भगवन इसका क्या कारण है ? : : उत्तर-गौतम! मव्यजीव.अन्तक्रिया करते हैं, अभयजीव अन्तक्रिया नहीं करते हैं।
यह समुच्चय जीव के संबंध में प्रश्नोत्तर हैं। इसी । अंकार नैरयिंक से लेकर वैमानिक देवो तक के वियय में प्रश्न करना चाहिए । इन सर्व प्रश्नों का उत्तर यही होगा कि कोई जीव अन्तक्रिया करते हैं, कोई नहीं करते । अर्थात् भव्य जीव, करते हैं, अभव्यजीव नहीं करते।
- इसके पश्चात् गौतम स्वामी पूछते हैं-अगर भव्य नारक श्रादि अन्तकिया करते हैं तो क्या उसी भव से करते हैं ? .... उत्तर-हे.गौतम नहीं। नरक के जीव मनुष्य भन पाकर अन्तक्रिया करते हैं। मनुष्य भव के बिना अन्तक्रिया नहीं हो सकती।
. .. : “यहाँ यह प्रश्न होता है कि पहले नारकियों का अन्तक्रिया करना कहा है और यहाँ उसका निषेध प्योंदिया