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अंत किया
उत्तर - गौतम ! कोई जीव करता है, कोई जीव नहीं करता है; यहां प्रज्ञापना सूत्र का वीसवां अन्तक्रिया पद समझना चाहिए ।
व्याख्यान — कई लोगों का कथन है कि जीव स्वभाव से संसार में परिभ्रमण करता रहता है और जीव का स्वभाव सदा कायम रहता है, इसलिए उसका भव-भ्रमण भी सदा कायम रहता है । इस कथन का आशय यह निकला कि जीव कभी मुक्ति वहीं प्राप्त करता । कदाचित् किसी जीव को मोक्ष प्राप्त हो जाय तो वहां पर भी वह कुछ समय रहकर दूसरी योनि में जन्म ले लेता है | उनकी मान्यता के अनुसार मोक्ष भी संसार की हो एक अवस्था है । वे मोक्ष को ऐसा नहीं मानते, जहाँ पहुँच कर जीव का परिभ्रमण समाप्त हो जाता है; फिर कभी वहां से वापस नहीं लौटना पड़ता ।
इस मान्यता पर दृष्टि रखते हुए गौतम स्वामी पूछते ३- भगवन् ! जीव संसार में ही रहता है या संसार-विच्छेद कर मोक्ष भी जाता है ? अर्थात् जीव अन्तक्रिया करता है ?
जिस क्रिया के पश्चात् फिर कभी दूसरी क्रिया न करनी पड़े. वह अंतक्रिया कहलाती है अथवा फर्मों का सर्वथा अन्त करने वाली क्रिया भी अन्तक्रिया कहलाती है । दोनों का श्राशय एक ही है - सकल कर्म समूह का क्षय करके मोक्षप्राप्ति की क्रिया अन्तक्रिया है ।
इस प्रश्न के उत्तर के लिए आचार्य पन्नवणासूत्र के 'अन्तक्रिया' नामक चीलर्वे पद का हवाला देकर कहते हैं