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________________ [६९३ ] संसार संस्थानकाल में से कोई बाहर निकल कर आता है। वही काल नरक का अशून्य काल कहलाता है ! कहा है- .. आइट्ठसमइयाणं, नरइयाणं न जाव एको वि । उन्चट्टइ अन्नो वा, उववज्जइ सो असुन्नो ओ॥ अर्थात्-श्रादिष्ट समय वाले नारकी जीवों में से जब तक न एक भी मरकर निकलता है, न कोई नया उत्पन्न होता है, तव तक का काल अशून्यकाल कहलाता है। वर्तमान काल के इन नारकियों में से एक, दो, तीन त्यार, इत्यादि क्रम से निकलते-निकलते जब एक ही नारकी. शेष रह जाए, अर्थात् मौजूदा नारकियों में से एक का निकलना जय प्रारंभ हुआ तब से लेकर जब एक शेप रहा तव तक के समय को मिथकाल कहते हैं । उदाहरणार्थ-वर्तमान काल में यहां जितने मनुप्य बैठे हैं, वे सब एक-एक करके चले जावें, सिप मनुष्य शेष रह जाय और दूसरे नये पाजावे, तब तक का समय मिश्रकाल कहलाता है। वर्तमान काल के जिन नारकियों का ऊपर विचार किया है, उनमें से जब समस्त नारकी, नरक से निकल आवें एन भी शेष न रहे, और उनके स्थान पर सभी नये नारकी पहुँच जायें, वह समय शुन्यकाल कहलाताहै ।जैसे-व्याख्यान में एक हजार श्रादमी बैठे थे. धीरे-धीरे वे सब चले गये । उनमें से एक भी बाकी न रहा और उनके बंदले नये आदमी आ येठे, यह शुन्यकाल कहलाया। भगवान् फर्माते हैं- हे गौतम ! यह जीव नरक में
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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