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________________ श्रीभगवती सूत्र [६९४] रहा है। इसने कभी ऐसी अवस्था भोगी है जब नरक के अपने साथियों से बिछुड़ कर अकेला ही रहा, कभी इसने ऐसी अवस्था भोगी, जब इसके साथी अनेक जीव वहां मौजूद थे और कभी ऐसा भी समय आया जब इसके साथ पहले वालों में कोई भी शेष नहीं रहा था। ____ गौतम स्वामी पूछते हैं-भगवन ! तिर्यंच योनि में यह जीव कैसे रहा ? भगवान् फर्माते हैं-गौतम ! तिथंच योनि में जीव दो प्रकार ले रहा-शून्यकाल में और मिश्रकाल में। मिश्रकाल के नारकी जीवों का जो विचार किया है, वह वर्तमान काल के जीवों की अपेक्षा से ही नहीं किया है, किन्तु जिस काल में नरक के जीव नरक में थे, वे निकला कर दूसरी योनि में गये-फिर चाहे वे किसी भी योनि में गये, हो, परन्तु उनकी अपेक्षा से भी विचार किया है। उदाहरण के लिए व्याख्यानसभा में एक हजार मनुप्य बैठे थे। उनमें से और सब चले गये, सिर्फ एक ही मनुष्य शेष रहा। वे गये हए मनुष्य, कहीं भी जाकर व्याख्यान में श्रा जावें, वह समय मिश्रकाल कहलाता है। अगर ऐसा, न माना जायगा तो दोप पायगा। आगे अशल्यकाल की अपेक्षा मिश्रकाल अनन्तगुणा कहा है, सो घट नहीं सकेगा। प्रशून्यकाल अर्थात् विरहकाल बारह महूर्त का है। अगर यहाँ नरक के जीवों की ही अपेक्षा ली जाय तो वह असंख्यातगुणा ही ठहरेगा, अनन्तगुणा नहीं। इसलिए जो जीव नरक से निकल कर वनस्पति में गया, वह भी नरक की अपेक्षा वाले मिश्रकाल में गिना जायगा, तभी मिश्रकाल की अनन्तगुणा सिद्ध होगी। कहा भी है:
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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