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श्रीभगवती सूत्र
| દરર !
तो वहां कितने प्रकार का काल मोगा? यहां लोकोत्तर काल से अभिप्राय समझना चाहिए। भगवान ने उत्तर दिया-गौतम! नरक में जीवने तीन प्रकार का काल बिताया है:-शून्य काज शून्यकाल और मिश्रकाल । आगम में कहा है।
सुन्नासुन्नो मीसो तिविहो संसार चिटणा काला । तिरियाणं सुन्नवजो सेसाणं होइ तिविदो वि।
अर्थात्-संसार संस्थान काल तीन प्रकार है:-शून्यकाल, अशून्यकाल और मिथकाल तिर्यों में शून्यकाल नहीं होता, ओर सव गातयों में तीनों प्रकार का संस्था काल होता है।
· अव प्रश्न यह है कि शून्य काल किसे कहते हैं ? इस विषय में टीकाकार का कथन है चाप पहले शून्यकाल का नाम आया है, तथापि पहले अशुन्यकाल का स्वरुप बतलाया जाता ह! अशून्यकाल समझ लेने पर शष दो सरलता से समझे जा सके।
वर्तमान काल में सातो नरकों में जितने जीव विद्यमान हैं, उनमें से जितने समय तक न कोई जीव भरे और नया उत्पन्न हो, अर्थात् उतने के उतने ही जीव जितने समय तक रहे, उस समय को नरक की अपेक्षा प्रशून्य काल कहते हैं। उदाहरणार्थ-इस समय व्याख्यान सभा में जितने थोता. भौजूद हैं उनमें से जव तक.न एक भी जावे और न एक भी नया आवे, उस समय को अशून्य काल ललना चाहिए। तात्पर्य यह है नरक में एक ऐसा भी समय प्राता है जब ने कोई नया जीव नरक में जाता है और न पहले के नारकियों