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सनुष्य वर्णन गति है वैसी मात होती है। कल्पना कीजिए, आप दिल्ली नगर के मकानों की रचना देख रहे हैं। यह रचना किस प्रकार हुई है ? सर्व प्रथम मनुष्य के मस्तिष्क में इस रचना का विकास हुआ, फिर उसने उसे स्थूल रुप प्रदान किया । अतएव यह रचना मन के विचारों पर ही निर्भर है। जिस मन के विचार से यह रचना हुई है, उसी मन के विचार ले रह नष्ट भी हो सकती है। इसी प्रकार स्वर्ग या नरक मादि सब मन को लेश्या पर निर्भर है। जैसी लेश्या होती है, वैसी हो गति होती है। पहले लेश्या वनी या पहले स्थान बना, यह कहा नहीं जा सकता, क्योंकि दोनों में से किसी की पहल नहीं है, दोनों अनादिकालीन प्रवाह से चन रहे हैं।
लेश्या एक साधारण-सी बात मालूम होती है, पर अगर गहराई से देखा जाय तो लेश्या के ही कारण जीव अनादिकाल से भव-भ्रमण कर रहा है। अतः यह विचार मत करो कि स्वर्ग में सुख और नरक में दुःख है, वरन् निश्चित समझो कि समस्त सुख और दुःख तुम्हारी ही लेश्या में भरा पड़ा है। अनाथी मुनि ने राजा श्रेणिक को यह सब बतलाया था। उन्होंने कहा था
अप्पा कत्ता विकत्ता य, सुहाण य दुहाण य । अप्पा मित्तममित्तं च, दुप्पट्टिय सुप्पट्टियो।।
अप्पा नई वेयरणी, अप्पा मे कूडसामली । अप्पा कामदुहा धेरए, अप्पा:मे नंदणं वणं ।।