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श्रीभगवती सूत्र
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अर्थात-विना कर्म के कुछ होता नहीं और कर्म अपने ही किये लगते हैं। इसलिए चाहे दुख हो चाहे सुख हो, वह अपना-आत्मा का ही किया हुआ है ।जो कुछ करता है, आत्मा ही करता है । अतरव प्रात्मा ही अपना मित्र है और
आत्मा ही अपना शत्रु है। . आत्मा के अपने ही कमी से सुख दुःख की प्राप्ति होती
है, इसलिए श्रात्मा ही वैतरणी नदी हैं, श्रात्मा ही कूट शाल्मलिवृक्ष है और आत्मा ही कामधेनु तथा नन्दनवन है।
लेश्या में ही संसार है । बुरी लेश्या में नरक है। अगर वैतरणी से डरते हो तो बुरी लेश्या क्यों उत्पन्न होने देते, हो? वैतरणी की लेश्या नहीं लाओगे तो वैतरणी श्राप ही दूर भाग जायगी। .
अनाथी मुनि ने वैतरणी और कूट शाल्मलि वृक्ष में सारा नरक गर्भित कर दिया है और कामधेनु एवं नन्दन वन में सम्पूर्ण स्वर्ग समा दिया है। कूट शाल्मलि, वैतरणी, नन्दनवन और कामधेनु अन्य कुछ नहीं, सव आत्मा की लेश्या में ही हैं । इस प्रकार स्वर्ग और नरक, दोनों तुम्हारी मुट्टियों में हैं । जिसे चाहो, अंगीकार कर सकते हो। तुम स्वयं अपने सुख-दुखदाता ईश्वर हो.। दूसरा कोई तुम्हें स्वर्ग नरक का अधिकारी नहीं बना सकता।
लेश्या की विशुद्धि के लिए सतत आत्मनिरीक्षण की आवश्यकता है । तुम्हारे अन्तःकरण में कव, कौन सी लेश्या का प्रादुर्भाव होता है, यह वात शास्त्र रूपी दर्पण में, ज्ञाननेत्रों से देख सकते हो। जैसे वैद्यकशास्त्र में रोग के लक्षण