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________________ श्रीभगवती सूत्र । ६० अज्ञो जन्तुरनीशो ऽ यमात्मनः सुख-दुःखयोः । ईश्वर प्रेरितो गच्छेत, श्वभ्रं वा स्वर्गमेव वा ।। . अर्थात्-यह अज्ञानी जीव अपना सुख-दुःख भोगने में असमर्थ है । इसलिए ईश्वर की प्रेरणा से प्रेरित होकर स्वर्ग-नरक में जाता है। ईश्वर सुख-दुःख का दाता है,इस संबंध में, इसी सूत्र के व्याख्यान में पहले विचार किया जा चुका है । अतएव पिष्ट पेषण करना उचित नहीं है । वास्तव में ईश्वर को सुख-दुःख का दाता मानने से उसमें अनेक दोष पाते हैं। इसलिए ईश्वर सुख-दुःख नहीं देता। अगर ईश्वर सुख-दुःख नहीं देता तो जीव को नरक में कौन भेजता है ? इस प्रश्न का समाधान करने के लिए ही लेश्या के असंख्यात स्थान बतलाये गये हैं। और साथ ही यह भी बतलाया गया है कि जीव जिस स्थान में उत्पन्न होता है उसी की लेश्या में श्रायु-बंध होता है। इससे यह निष्कर्ष निकालना कठिन नहीं है कि नरक या स्वर्ग में ले जाने वाली लेश्या ही है । कहा भी है मरणान्ते या गतिः सा मतिः । अर्थात्-मृत्यु के पश्चात जैसी गति होने वाली है, वैसी ही मति मृत्यु काल में होती है। जब तक आयु का वंध नहीं हुआ तव तक जैसी मति है वैसी गति है, मगर आयु का बंध हो चुकने के पश्चात जैसी
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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