________________
श्रीभगवती सूत्र
३२६ कर्मों की ऐसी दशा होती है, जैसे उन्हें ज़हर ही दे दिया गया हो।
राजा ने फिर सोचा-प्रिये ! तू ने खूब किया। मेरे कमों को अच्छा जहर दिया । तू ने मेरी बड़ी सहायता की। ऐसा न करती तो मुझ में उत्तम भावना न ाती। पतिव्रता के नियमों का पालन तू ने ही किया है।
राजा ने प्रमार्जन, प्रतिलेखन तथा अालोचना-श्रादि करके अरिहंत-सिद्ध भगवान् की साक्षी से संथारा धारणा कर लिया।
____उधर रानी के हृदय में अनेक संकल्प-विकल्प उठने लगे । उसने सोचा 'ऐसा न हो कि राजा जीवित रह जाए अगर ऐसा हुआ तो भारी विपदा में पड़ना पड़ेगा। अतएव इस नाटक की पूर्णाहुति करना ही उचित है।' इस प्रकार सोचकर वह राजा के पास दौड़ी आई और प्रेम दिखलाती हुई कहने लगी मैं ने सुना, आपको कुछ तकलीफ हो गई है ?
राजा.ने, रानी से कुछ भी नहीं कहा। वह चुपचाप अपने आत्मचिन्तन में निमग्न रहा । संसार का असली स्वरूप उसके सामने नाचने लगा। तब रानी ने राजा का सिर अपनी गोद में ले लिया। और अपने सिर के लम्बे-लम्बे वालों से उसका सिर ढंक लिया। इस प्रकार तसल्ली करके और चारों और निगाह फेरकर उसने राजा का गला दवोच दिया। . रानी ने जव अपने पति का राजा का गला दवाया तो वह सोचने लगा-रानी मेरा गला नहीं दवा रही है, मेरे शेष कर्मों का नाश कर रही है।