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चलमाणे चलिए
राजा प्रदेशी ने इस प्रकार फर्मों की उदीरणा की। इस उदीरणा के प्रताप से, वह सूर्याभ विमान में देव हुश्रा। उंदीरणा ने उसे नरक का अतिथि होने से पचा लिया और स्वर्ग:सुख का अधिकारी बनाया । राजा प्रदेशीने अल्पकालीन समाधिभाव से ही अपना बेड़ा पार कर लिया । अगर वह दूसरे का हिसाव करने पैठता तो ऐसा न होता।
तात्पर्य यह है कि राजा प्रदेशी ने उदीरणा के प्रताप से न जाने कित्तने भवा का पाप क्षय करके श्रात्मा को हल्का चना लिया। इस प्रकार उदारणा के द्वारा करोड़ों भवों में भोगने योग्य कर्म क्षण भर में ही नष्ट किये जा सकते हैं। दूसरा प्रश्न इसी उदीरणा के संबंध में है। . गौतम स्वामी ने तीसरा प्रश्न किया
वेइज्जमाणे वेइए? अर्थात् जो वेदा जा रहा है वह वेदा गया?
आत्मा को सुख-दुःख होना, यही कर्म वेदना है। जव कर्म की स्थिति पूर्ण हो जाती है तब वे उदय-श्रावलिका में आते हैं। मान लीजिए किसी ने तीस कोड़ा कोड़ी सागरोपम की स्थिति वाले कर्म यांचे । जब तक यह स्थिति-काल पूर्ण न हो जायगा, तब तक वह कर्म फल नहीं देंगेंसत्ता में विद्यमान रहेंगे । जब यह काल पूर्ण हो जायगा तब कर्म उदय श्रावलिका में प्राचेंगे । उदय-श्रापलिका में आये हुए कर्मों के फल को भोगना निर्जरा कहलाता है, क्योंकि फल भोग के पश्चात् कर्म खिर जाते हैं । जब तक कर्मों की निर्जरा नहीं होती तभी तक कर्म भोगने पड़ते हैं और जब