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श्रीभगवती सूत्र
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ऐसा भीपण संकल्प करके रानी पौषधशाला में, जहाँ राजा मौजूद था, आई, उसने राजा के प्रति प्रेम प्रदर्शित करते हुए कहा-आप तो बस, यहीं के हो गये हैं ? किस अपराध के कारण मुझे भुला दिया है ? आपके लिए तो और रानियाँ भी हो सकती हैं, मगर मेरे लिए आपके सिवाय और कौन है ? अतएव आज कृपा करके मेरे ही महल में पधारिये और वहीं भोजन कीजिए।
राजा ने सोचा-स्त्री-सुलभ पति भक्ति से प्रेरित हो. कर रानी उलाहना और निमंत्रण दे रही है। उसने रानी के महल में भोजन करना स्वीकार किया। रानी अपने महल में लौट आई । इसने राजा के लिए विपमिश्रित भोजन बनाया। जल में भी विप मिलाया और पालन आदि पर भी विप का छिटकाव किया । इस प्रकार विष ही विप फैलाकर रानी ने राजा को भोजन करने के लिए बैठाया और राजा के सन्मुख विषमिश्रित भोजन पानी रख दिया। रानी पतिभाक्ति का दिखावा करने के लिए खड़ी होकर पंखा झलने लगी । ज्यों ही राजा ने भोजन प्रारंभ किया, उसे मालूम हो गया कि भोजन में विर का मिश्रण किया गया है। वह चुपचाप उटकर पौषधशाला में आ गया।
राजा किस प्रकार अपने कर्मों की उदीरणा करता है, यह ध्यान देने की बात है। इसे ध्यान से सुनिये और विचार कीजिए।
पौषधशाला में आकर राजा विचारने लगा-रानी ने मुझे जहर नहीं दिया है। मैंने रानी के साथ जो विषयभोग किया है, यह जहर उसी के प्रताप से आया है।