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चलमाणे चलिए
राजा प्रदेशी की सूरीकान्ता नाम की रानी थी । राजा को वह बहुत प्यारी थी । राजा ने जब केशी भ्रमण के बारह व्रत धारण कर लिए और वह धर्मात्मा वन गया, तब सूरीकान्ता ने सोचा- 'राजा, धर्म के ढोंग में पड़ा रहता है । विषय-भोग का आनन्द विगड़ गया है । इसे मरवा कर और कुँवर को राजसिंहासन पर बिठलाकर राजमाता होने का नवीन सुख क्यों न भोगा जाय ?
इस प्रकार दुष्ट संकल्प करके रानी ने अपने पुत्र सूरी • कान्त को बुलवाया। रानी ने उससे कहा--बेटा, तुम्हारा पिता ढोंगियों के चक्कर में पढ़कर राज्य को मटियामेट किये देता है। थोड़े दिनों में ही सफाया हो जायगा, तब तुम क्या करोगे ? श्रतएव अपने भविष्य को देखो और अपना भला चाहते हो तो राजा को इस संसार से उठादा । मैं तुम्हें राजा बनाऊँगी |
राजकुमार को अपनी माता के वचन ज़हर से लगे । उसने पिता को मारने से इन्कार कर दिया । मन ही मन सोचा तुम मेरे देव- गुरु के समान पिता को मार डालने को कहती हो ! तुम माता हो, तुमसे क्या कहूँ ? कोई दूसरा होता तो इस बात का ऐसा मज़ा चखाता कि वह भी याद रखता ।
राजकुमार के चले जाने पर रानी ने सोचा- यह बहुत बुरा हुआ। मुँह से बात भी निकल गई और काम भी सिद्ध न हुआ। कहीं राजकुमार ने यह बात प्रकट करदी तो घोर अनर्थ होगा। मैं कहीं की नहीं रहूँगी । श्रतएव बात फूटने से पहले ही राजा को मार डालना श्रेयस्कार है । '