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श्रीभगवती सूत्र
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श्रावक को आरंभिकी, पारि हिकी और माचाप्रत्यया क्रिया लगती है । तेरहपंथी सम्प्रदाय की मान्यता है कि . श्रावक का लेन देन खान-पान आदि सब एकांत अत में है और व्रत पाप में हैं । अतएव श्रावक का लेन-देन, खानापीना, आदि सब एकान्त पापरूप है । इसीलिए श्रावक को भोजन आदि देना एकान्त पाप है। उनके कथनानुसार सिर्फ तेहपंथी साधुओं को आहार देने से व्रत निपजता है । तेरहपंथी साधुओं के सिवाय और सबको देना पाप है ।
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इस प्रकार श्रव्रत का नाम लेकर वे श्रावक के सभी काम में एकान्त पाप कहते हैं मगर उनसे पूछना चाहिए कि व्रती को पुण्य होता है या नहीं ? और वह स्वर्ग जाता है या नहीं ? इसके उत्तर में वे कहते हैं-श्रव्रती स्वर्ग तो जाते हैं मगर व्रत सेवन से नहीं, वरन् वह जो तप करता है, श्रकाम कष्ट सहन करता है और वस्तुओं का त्याग करता 'है' इस कारण स्वर्ग जाता है । अव प्रश्न यह उपस्थित होता है किं. उसने जो तप किया है, कष्ट सहन किया है, यह सत्र व्रत 'मैं समझा जाय या अत में ? और वह किस चौकड़ी का क्षयोपशम करता है ? इन प्रश्नों का उनसे कुछ भी उत्तर नहीं बन पड़ता । नगर उसका कष्ट सहन भी व्रत में है तो श्रवत से स्वर्ग नहीं मिलता, अतएव उसे स्वर्ग भी नहीं मिलना चाहिए ।
तेरहपंथी भाई श्रावक को अव्रत कैसे लगाते हैं, यह समझ