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________________ श्रीभगवती सूत्र [ ६३ ] भगवान् ने संक्षेप में यह उत्तर दिया है। टीकाकार विपय को स्पष्ट करने के लिये कहते हैं कि यद्यपि श्रनुरकुमारों के आहार का सूत्र नैरयिकों के आहार के सूत्र ही के समान है, तथापि नैरयिकों का आहार किस अपेक्षा से कहा है और असुरकुमारों का किस अपेक्षा से कहा है, यह भेद जानने योग्य है । नार की जीवों के समान असुरकुमार भी अल्पशरीर वाले और महाशरीर वाले हैं । महाशरीर वाले असुर कुमार बहुत पुद्गलों का श्राहार करते हैं, बारम्बार श्राहार करते हैं और बार-बार उच्छ्वास लेते हैं । श्रल्पशरीरवाले असुरकुमार थोड़े पुद्गलों का आहार करते हैं, वारम्वार श्राहार नहीं करते हैं और बार-बार उच्छ्वास भी नहीं लेते हैं । असुरकुमारों का स्वाभाविक शरीर जघन्य अंगुल के संख्यात भाग का और उत्कृष्ट सात हाथ का है । उत्तर वैक्रिय की अपेक्षा जघन्य अंगुल के संस्यातवें भाग और उत्कृष्ट एक लाख योजन है । असुरकुमारों का आहार मानसिक आहार समझना चाहिए । वे इच्छा करते हैं और उसी समय उनकी जाती है । उनका आहार सामान्यतया मनुष्य के समान नहीं मिट भूख होता । अल्प शरीर वालों का कम आहार और महाशरीर वालों का अधिक श्राहार अपेक्षाकृत समझना चाहिए । : शंका - कोई-कोई देव मनुष्य की तरह कवलाहार करते हैं और कोई-कोई रोम से भी आहार करते हैं। फिर यहां देवों को मानसिक आहार करने वाला क्यों कहा है ?
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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