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________________ [ ६३३ ] असुरकुमारादि की समानता ?' लेझ्याः परवर्गातम्या:-पूर्वोपपन्ना महाकर्मतराः, अविशुद्धवर्णतराः, अवशुद्धलट्यानमः । पश्चादुपपन्नाः प्रास्ताः, शेषं तथैव । एवं यावत् . स्तनित-कुमारः। मूलार्थ-प्रश्न-भगवन् ! सब असुरकुमार समान आहार वाले और समान शरीर वाले हैं ? उत्तर--गौतम ! असुर कुमारों का वर्णन नारकियों के समान कहना चाहिए। रिशेपना यह है कि-असुरकुमारों के कर्म, वर्ण और लेश्या नारक्रियों से विपरीत कहना - चाहिए । अर्थात् पूर्वोत्पन्न असुरकुमार महाकर्म वाले, अवि शुद्ध वर्ण वाले और अशुद्ध लेश्या वाले हैं । पश्चात् उत्पन्न होने वाले प्रशस्त हैं । शेप पहले के समान समझना । इसी प्रकार स्तनित कुमारों तक जानना चाहिए। व्याख्यान-पहले दंडक नारकी के विपय में प्रश्नोत्तर हो चुके । अब अलुरकुमारों के दूसरे दंडक के विषय में प्रश्नो. त्तर प्रारंभ होते हैं। गौतम स्वामी पूछते हैं कि असुरकुमार जाति कीअपेक्षा एक ही है तो क्या उन सबका आहार और शरीर भी समान है ? इसके उत्तर में भगवान ने, फर्माया है-गौतम! ऐसा नहीं है । असुरकुमारों के विषय में भी सभी बातें नैरयिकों के समान ही हैं । अन्तर केवल यह है कि असुरकुमारों का कर्म, वर्ण और लेश्या, नरयिकों के कर्म, वर्ण और लेश्या स विपरीत समझना।
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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