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श्रीभगवती सूत्र
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श्रप्रत्याख्यान और माया हैं । इन में लेशमात्र भी विरोध नहीं है । अतएव शब्दों का किंचित् भेद होने पर भी वस्तु दोनों जगह एक ही है ।
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नारकियों में जों सम्यग्दृष्टि हैं उनमें चार क्रियाएँ होती .. हैं. और जो मिथ्यादृष्टि हैं उनमें पांचों क्रियाएँ होती हैं ।
इसके पश्चात् गौतम स्वामी प्रश्न करते हैं-भगवन् ! सब नारकी समान श्रायु वाले और साथ ही उत्पन्न हुए हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फर्माते हैं-नहीं गौतम ! ऐसा नहीं है । तब गौतम स्वामी द्वारा कारण पूछने पर भगवान् उत्तर देते हैं:
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गौतम ! इस अपेक्षा से नारकी चार प्रकार के हैं। कई समान आयु वाले और साथ ही उत्पन्न हुए हैं, जैसे स्थिति दस-दस हजार वर्ष की है और उत्पन्न भी साथ-साथ हुए हैं । यह समायु और समोपनक कहलाते हैं । दूसरे समान आयु वाले और विषम उत्पत्ति वाले हैं, जैसे श्रायु तो दस-दस हजार वर्ष की है मगर एक साथ उत्पन्न नहीं हुए हैं। तीसरे 'विषम आयु वाले और सम उत्पत्ति वाले हैं, जैसे एक साथ उत्पन्न होने वाले दस हजार वर्ष की और एक सागरोपम स्थिति वाले । चौथे विषम आयु वाले और विषम उत्पत्ति वाले हैं, अर्थात् जिनकी आयु भी समान नहीं है और उत्पत्ति भी एकसाथ नहीं हुई है । इस चौभंगी के कारण सब नारकी समान श्रायु वाले और एक साथ उत्पन्न हुए नहीं है ।
नारक जीवों के पहले दो भेद किये थे, फिर तीन भेद किये और यहाँ चार भेद किये गये हैं । इसमें पारस्परिक