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समवेदनादि - प्रश्नोत्तर
विरोध की संभावना नहीं करना चाहिये । प्रत्येक वस्तु में नेक धर्म पाये जाते हैं । उन धर्मों के आधार पर उनकी जाति (समूह) को विभिन्न दृष्टियों से विभिन्न संख्यक भेदों जा सकता है । जैसे, किसी कक्षा में पाँच विद्यार्थी हों तो उन्हें प्रान्त के भेद से दो भागों में विभक्त किया जा सकता है, उम्र के लिहाज़ से उनके तीन भेद किये जा सकते हैं, वस्त्रों की अपेक्षा चार भेद किये जा सकते हैं और व्यक्तित्व के आधार पर वह पाँच हैं । यही बात यहाँ नारक जीवों के विपय में है ।
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