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श्रीभगवती सूत्र
[६१२] से यह पता चल गया । एक अंगरेज सजन ने एक महिला का चित्र खींचा । उसमें महिला के साथ मुर्गी के बच्चे और विल्ली का भी फोटो आ गया, क्योंकि महिला उनके सम्बन्ध में उस समय विचार कर रही थी। तभी यह पता लगा कि मन की भावनाओं का भी चित्र अंकित हो सकता है। मगर यह नहीं कहा जा सकता कि मानसिक भावना में किस कोटि की उग्रता हो तब उनका चित्र आता है, अन्यथा नहीं।
कहते हैं कि जिसके विचार अशुद्ध और क्रूर होते हैं, उसका फोटो भी भद्दा आता है। स्वार्थहीन, उदार तथा शुद्ध विचार वाले का फोटो साफ पाता है।
जैन शास्त्रों में उन्हीं मानसिक भावों के लिए लेश्या का निरूपण किया गया है और उनकी शुद्धता-अशुद्धता को देखकर विशिष्ट ज्ञानियों ने उनके कृष्ण, नील श्रादि छह भेद भी यताये हैं। उत्तरांध्ययन और प्रशापना सूत्र में लेश्याओं का विस्तृत वर्णन पाया जाता है। वहाँ उनके वर्ण, गंध, रस आदि का भी निरूपण किया है।
जिसके मन में जैसे विचार होते हैं, वैसे ही परमाणु उसके श्रा चिपटते हैं। जिसके मन में किसी की हत्या करने की भावना होगी, उसके काले और काले में भी अत्यन्त भद्दे पुदल प्रा चिपटेंगे । तात्पर्य यह है कि खोटे परिणाम होने पर रंग भी खोटा हो जाता है।
विज्ञान की अनेक उपयोगी वातें जैन शास्त्र में पहले ही बतला दी गई हैं, लेकिन आज वह वाते शास्त्र के पन्नों में ही पड़ी हुई है । यह हम लोगों की कमजोरी या उपेक्षा है। आज