________________
- ( ५६५)
दुख वेदन प्रश्न के उत्तर में भी भगवान ने 'हाँ' कहा है। अर्थात् जो उत्तर एक जीव के सम्बन्ध में है, वही बहुत जीवों के संबंध में भी है। और वह उत्तर यही कि बहुत जीव (सभी जीव) अपने ही किये कर्म का फल भोगते हैं और उदय-प्राप्त कर्म का फल भोगते हैं, अनुदय प्राप्त का फल नहीं भोगते । यह वात चौवीसों ही दंडकों के जीवों के लिये समान रूप से चरितार्थ होती है।
दुख या कर्म सम्बन्धी प्रश्नोत्तर के पश्चात् गौतम स्वामी ने दूसरा प्रश्न किया कि:-भगवन् ! जीव अपने किये आयुष्य को वेदता है ? इसका उत्तर भगवान् फर्माते हैंहे गौतम! जीव अपने उपार्जन किये श्रायुष्य को वेदता है, पर-कृत को नहीं वेदता।
यहाँ यह शंका की जा सकती है कि श्रायु-कर्म पाठ कमों के अन्तर्गत है । अतएव समुच्चय रूप से कर्मों के विषय में जो प्रश्नोत्तर किया जा चुका है, वह आयुकर्म पर भी लागू होता ही है। उसी प्रश्नोत्तर से यह सिद्ध हो जाता है कि जीव स्वयं-कृत श्रायु को भोगते हैं। तथापि यहाँ अलग प्रश्नोत्तर श्रायुक्रर्म के विषय में क्यों किया गया है ?
इसका समाधान यह है कि लोक-भ्रम निवारण के लिये विशेष रूप से यह प्रश्नोत्तर किया गया है। महाभारत आदि प्रन्थों में यह कल्पना पाई जाती है कि प्रायु भी दी और ली जा सकती है । इसके अतिरिक्त कई अज्ञान पुरुष अपनी आयु चढ़ाने के लिए बकरा मारते हैं और समझते हैं कि हमने उस की आयु ले ली है । इस प्रकार की मूढ़ता का निवारण करने के लिये भगवान् ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अपनी श्रायु