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श्रीभगवती सूत्र
[ २९ ]
का फल इस समय भोग रहा है, इसी कारण सुखी मालुम होता है । वर्त्तमान में किये जाने वाले अशुभ कर्मों की जब उदय अवस्था होगी, तब उसे इनका फल भी अवश्य भोगता पड़ेगा । यही बात दुखी धर्मात्मा के विषय में लागू पड़ती है । इस समय अगर कोई धर्मनिष्ठ पुरुष दुखी है तो समझना चाहिए कि वह पहले किये हुए किसी अशुभ कर्म का फल भोग रहा है। उसके वर्त्तमानकालीन धर्म कार्यों का फल अभी नहीं हो रहा है । पहले के कर्म उयावस्था में हैं और वर्त्तमान कालीन कर्म अनुदय-अवस्था में हैं । जब वह उदयावस्था में श्राएँगे तो उनका अच्छा फल उसे श्रवश्य प्राप्त होगा ।
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गौतम स्वामी फिर पूछते हैं- भगवान् ! क्या चौबीस दंडकों के सभी जीव इसी प्रकार अपने किये कर्म भोगते हैं ? इसके उत्तर में भगवान् फर्माते हैं - हाँ गौतम, इसी प्रकार भोगते हैं ?
पहले प्रश्न में और इस प्रश्न में क्या अन्तर रहा ? यह प्रश्न इसलिए किया गया है कि नरक के जीव को तो परमाधामी देव दुख देते हैं, फिर क्या वहाँ पर भी जीव अपने ही किये दुख भोगता है ? भगवान् ने इस प्रश्न का उत्तर' हाँ' में दिया है, इससे यह सिद्ध हुआ कि नरक के जीव भी अपने ही किये कर्मों का फल भोगते हैं । कोई भी जीव दूसरे के किये कर्म नहीं भोगता । परमाधामी जीव निमित्तमान । वास्तव में असली कारण तो अपने २ कर्म ही हैं ।
गौतम स्वामी ने पहला प्रश्न एक जीव की अपेक्षा से किया था, अब वह बहुत जीवों की अपेक्षा कर रहे हैं । इस