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________________ [५९३ ] दुःख वेदन इस संक्षिप्त उत्तर से वस्तुस्थिति स्पष्ट न होते देख गौतम स्वामी ने फिर पूछा-भगवन् ! जीव किसी कर्म को. भोगता है, किसी को नहीं भोगता; इसका क्या कारण है ? इस प्रश्न के उत्तर में भगवान् फर्माते हैं-गौतम! कर्म की दो अवस्थाएँ हैं- उदयावस्था और अनुदयावस्था। जो कर्म जदीरणा द्वारा या खाभाविक रूप से पदय में आये हैं, उन्हें जीव भोगता है, और जो कर्म अब तक उदय में नहीं आये हैं, उन्हें नहीं भोगता । इस लिए सामान्य रूप में यही कहा जा सकता है कि जीव अपने किये कर्म भोगता भी है और नहीं भी भोगता है। यहां यह आशंका हो सकती है कि जगत् में कर्मों के फल में कोई व्यवस्था नहीं देखी जाती । एक हिंसा करने वाला, झूठ बोलने वाला और चोरी करने वाला व्यक्ति सुखमय जीवन व्यतीत करता है और इसके विपरीत अच्छे काम करने वाला धर्मात्मा गरीवी और मुसीवत की जिन्दगी विताता है। ऐसी स्थिति में यह कैसे माना जा.सकता है कि कर्मों का फल अवश्य होता है, अथवा अच्छे कर्मों का अच्छा फल औरः बुरे कर्मों का बुरा फल मिलता है ? इस शंका का समाधान करने के उद्देश्य से ही गौतम स्वामी ने यह प्रश्न किया है और भगवान् ने उत्तर दिया है। पहले बतलाया गया है कि कर्म की दो अवस्थाएँ हैं-उदया'वस्था और अनुदयावस्था । चोरी करना, झूठ बोलना और दूसरों को लताना पाप-कर्म है और उसका फल अशुभ ही हो सकता है, मगर ऐले पापी के पापकर्म अभी उदय-अवस्था में नहीं पाये हैं। वह अपने पहले किये हुए किसी शुभकर्म:
SR No.010494
Book TitleBhagavati Sutra par Vyakhyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShobhachad Bharilla
PublisherSadhumargi Jain Shravak Mandal Ratlam
Publication Year1947
Total Pages364
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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